लिखें, लेकिन असरदार ...

आप चीजों_को_कैसे_लिखते हैं, यह बहुत अंतर करता है। लिखते वक्त शब्दों का चयन व उनसे होने वाले प्रभाव और कुप्रभाव दोनों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए।

जब पूरा लिख लिया गया हो तो एक या दो बार पुनः विचार करें कि क्या जो प्रेसित करना चाहते हैं वही भावार्थ है या नहीं? कोई ऐसी बात तो नहीं लिखी जो दूसरों को बेवजह खराब लगे। क्या शब्दों को बदलने से समान या अच्छे भावार्थ के साथ दूसरों को अनावश्यक चोट पहुंचाने से बचा जा सकता है तो बचना ही उचित है। संप्रेषण में दूसरे के सम्मान का ध्यान रखा जाना हमेशा समझदारी है।

लेकिन यदि आपकी एकदम उचित, ज्यादातर लोगों के कल्याण की सही बात दूसरों को उनकी झूठी ईगो या दकियानूसी सोच और मानसिक अविकसितता के कारण खराब लगे तो ऐसे लोगों की बिना परवाह किये उसको निसंकोच व निडरता से अवश्य लिखना चाहिए। यही सिद्धांत बोलने में भी अपनाना चाहिए।

एक साधारण उदाहरण के लिए इस विडियो को देख सकते हैं-


0 Comments

Leave a Reply or Suggestion