पत्रकारिता पर पुनर्विचार आवश्यक
दिनांक 28 अप्रैल 2020 को जयपुर से प्रकाशित होने वाली राजस्थान पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर इस अखबार के संपादक श्रीमान गुलाब कोठारी ने पुनर्विचार आवश्यक नाम से एक संपादकीय लिखी। इस संपादकीय का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने एवं समझने के तत्पश्चात है लगा कि श्री गुलाब कोठारी के स्वयं के विचार उनकी संपादकीय में कई जगहों पर एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। मुझे तो लगता है कि उन्हें उनकी संपादकीय को पुनः विचारपूर्वक पढ़ना चाहिए और इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि वास्तव में वे क्या संदेश देना चाहते हैं? श्री गुलाब कोठारी ने लिखा है कि आरक्षण आत्मा का विषय है, फिर लिखा कि आरक्षण हीन भावना लाता है और आरक्षण ने देश की अखंडता की हत्या की है। उन्होंने आरक्षण को घुण की संज्ञा तक दे डाली और लिखा है कि पिछले 7 दशकों में आरक्षण ने देश की संस्कृति, समृद्धि व अभ्युदय सब को खा गया।
यह भी लिखा है कि नीतियां बुद्धिजीवी बनाते हैं जिनका माटी से कोई जुड़ाव नहीं होता, उनमें संवेदना नहीं होती। उनको निर्लज्ज तथा प्रज्ञा हीन तक कह डाला। साथ में लिखा है कि सरकारें आरक्षण पर मौन रहती हैं और उन्हें नकारा तथा नपुंसक तक की संज्ञा दी है।

वास्तविक मुद्दे जिनपर पुनर्विचार आवश्यक है…
राज्यसभा में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
मंत्रियों के सलेक्शन में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
सरकार के प्रत्येक विभाग की “की” पोस्टस् की नियुक्तियों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
प्राइवेट क्षेत्र के हर स्तर के रोजगारों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
अंत में लिख दिया कि जाति आधार सही है या नहीं इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। जब आरक्षण के इतने सारे नुकसान गिना दिए हैं तो पुनर्विचार की क्या आवश्यकता है उसे जड़ से समाप्त करने के लिए ही सूझाव देना चाहिए था।
परंतु इसी लेख में श्री गुलाब कोठारी के दूषित मन की भावना प्रकट हो ही गई हैं। उनका मानना है कि आरक्षण ने प्रकृतिदत्त वर्ण व्यवस्था से समाज को मुक्त कर दिया है जबकि वर्ण व्यवस्था कायम रहनी चाहिए। उन्होंने लिखा है कि मनुष्य में ही नहीं, वर्ण व्यवस्था तो पशु पक्षी व देवताओं में भी होती है। उनकी सोच है कि जो लोग खेती, पशुपालन या और छोटे-मोटे पुश्तैनी कार्य से जुड़े रहे हैं उन्हें वही कार्य करते रहना चाहिए, उन्हें शिक्षित होकर नौकरी करने से क्या लाभ है? उनके शिक्षित होने से गुणवत्ता खराब हो रही है। उन्होंने तो यह भी कहा कि व्यक्ति जिस वर्ण में जन्मा है वे उसके कर्म का फल है। यही नहीं पशु पक्षी कीट की योनियों में जन्म लेने तक को कर्म का फल बता दिया है। अपरोक्ष रूप से इंगित किया है कि जो भी आरक्षित वर्ग के लोग हैं वे उन समाजों में उनके पूर्व जन्म में कर्मों के कारण हैं।
इसके अलावा उन्होंने युवा वर्ग को भड़काने का कार्य भी किया है और 1990 में आरक्षण विरोधी आंदोलन की बढ़ाई भी की है।
यदि आज के जमाने में कोई व्यक्ति इस प्रकार की दकियानूसी बातें करें और आरक्षण के नुकसान के सिवाय उसके लाभ यदि समझ में ही नहीं आ रहे है तो ऐसे लोगों को संपादकीय लिखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के लोगों की विचारधारा एक तरफ तो वर्ण व्यवस्था की वकालात करती है और दूसरी तरफ जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध करती हैं। इस बात को भलीभांत समझते हुए कि वर्ण व्यवस्था जिसे कमजोर वर्गों के शोषण के लिए जिम्मेदार मानते हुए भारतीय संविधान के आर्टिकल 13 के तहत जड़ से समाप्त करने की बात कहीं गई, उसी की खुले में वकालात करना देशद्रोह के समान है।
वर्ण व्यवस्था की वकालत करने वाले श्री गुलाब कोठारी को समझना चाहिए की यदि आरक्षण नहीं होता तो देश में निम्नलिखित तीन स्थितियां हो सकती थी -
- प्रथम स्थिति होती जिसमें जो लोग आरक्षित वर्ग में है वे अपना अलग देश बना लेते।
- दूसरी स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग अलग देश बनाने में सफल नहीं होते तो देश में हर समय असमानता व विभिन्न प्रकार के शोषणों के कारण गृह युद्ध चलता रहता।और
- तीसरी स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग उक्त दोनों कार्य करने में असफल रहते तो वे उनके पोटेंशियल/क्षमता की तुलना में बहुत ही छोटा कार्य करते रहते जिसकी वजह से देश को स्किल के आभाव में बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता।
वास्तव में आरक्षण सभी के विकास व उत्थान के लिए एक आवश्यक उपाय है और जिन जातियों व समुदायों को आरक्षण मिला है उनकी आजादी के पहले और आजादी के बाद वर्तमान स्थिति से पता चलाया जा सकता है कि आरक्षण एक कितना कारगर उपाय सिद्ध हुआ है।
समझदार लोगों को इन मुद्दों को उठाना चाहिए कि 1) राज्यसभा, 2) उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों 3) मंत्रियों के सलेक्शन 4) सरकार के प्रत्येक विभाग की “की” पोस्टस् की नियुक्तियों 5) प्राइवेट क्षेत्र के हर स्तर के रोजगारों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
3 Comments
gate.io · March 10, 2023 at 2:43 am
I have read your article carefully and I agree with you very much. This has provided a great help for my thesis writing, and I will seriously improve it. However, I don’t know much about a certain place. Can you help me?
User Login · March 11, 2023 at 1:05 pm
I have read your article carefully and I agree with you very much. This has provided a great help for my thesis writing, and I will seriously improve it. However, I don’t know much about a certain place. Can you help me?
रिजर्वेशन के स्थान पर रिप्रजेंटेशन है, ज्यादा उचित, सम्मानजनक और अधिकार दिलाने वाला शब्द – Welcome to A · April 29, 2020 at 5:29 pm
[…] संपादकीय लेख का पुनर्विचार आवश्यक : गु… […]